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Param Pujay Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji

Param Pujay Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji

श्रीमहादेव-प्रोक्तं-मृत-सञ्जीवनी-कवचम् (महा-गोपनीय कवच)

सरद नवरात्री मैं ५१ हजार जाप और उस का ११ माला हवन करने से ये कवच मंत्र सिद्ध हो जाता है |
।। पूर्व-पीठिका ।।
एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमहेश्वरं ।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥१॥
सारात् सार-तरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं ।
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ २॥
समाहित-मना भूत्वा श्रृणुष्व कवचं शुभं ।
श्रृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥३॥

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीमृतसञ्जीवनीकवचस्य श्री महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवता ॐ बीजं, जूं शक्तिः, सः कीलकम् मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः- श्री महादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवतायै नमः हृदि, ॐ बीजाय नमः गुह्ये, जूं शक्तये नमः पादयो, सः कीलकाय नमः नाभौ, मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

कर-न्यासः- ॐ जूं सः अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ जूं सः तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ जूं सः मध्माभ्यां वषट्। ॐ जूं सः अनामिकाभ्यां हुँ। ॐ जूं सः कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ जूं सः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

हृदयादि-न्यासः- ॐ जूं सः हृदयाय नमः, ॐ जूं सः शिरसे स्वाहा, ॐ जूं सः शिरसे वषट्, ॐ जूं सः-कवचाय हुम्। ॐ जूं सः-त्रयाय वौषट्, ॐ जूं सः अस्त्राय फट्।

ध्यान-
चन्द्रार्काग्नि-विलोचनं स्मित-मुखं पद्म-द्वयान्तः-स्थितम्।
मुद्रा-पाश-मृगाक्ष-सूत्र-विलसत्पाणिं हिमांशु-प्रभम् |
कोटीन्दु-प्रगलत्सुधाऽऽप्लुत-तनुं हारादि-भूषोज्ज्वलं
कान्तं विश्व-विमोहनं पशुपतिं मृत्युञ्जयं भावयेत् ||
॥ मूल कवच पाठ ॥
वराभयकरो यज्वा सर्व-देव-निषेवितः ।
मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥४॥
दधानः शक्तिमभयां त्रिमुखः षड्भुजः प्रभुः ।
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥५॥
अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः।
यमरुपी महादेवो दक्षिस्यां सदाऽवतु ॥६॥
खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः।
रक्षोरुपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदाऽवतु ॥७॥
पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकर-निषेवितः।
वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदाऽवतु ॥८॥
गदाभयकरः प्राणनाशकः सर्वदा गतिः।
वायव्यां मारुतात्मा मां शंकर पातु सर्वदा ॥९॥
खड्गाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शंकरः प्रभुः ॥१०॥
शूलाभयकरः सर्वविद्यानामधिनायकः।
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥११॥
ऊर्ध्वभागे ब्रह्मारुपी विश्वात्माऽधः सदाऽवतु।
शिरो मे शंकरः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः ॥१२॥
भ्रूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिनेत्रो लोचनेऽवतु।
भ्रूमध्यं गिरिशः पातु कर्णी पातु महेश्वरः ॥१३॥
नासिकां मे महादेवः ओष्ठौ पातु वृषध्वजः।
जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान् मे गिरिशोऽवतु ॥१४॥
मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः।
पिनाकी मत्करौ पातु त्रिशूलो हृदयं मम ॥१५॥
पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु जठरं जगदीश्वरः।
नाभिं पातु विरुपाक्षः पार्श्वो मे पार्वतीपतिः ॥१६॥
कटिद्वयं गिरिशो मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरु पातु भैरवः ॥१७॥
जानुनी मे जगद्धर्ता जंघे मे जगदम्बिका।
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥१८॥
गिरिशः पातु मे भार्या भवः पातु सुतान् मम।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः। ॥१९॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः ।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥२०॥
।। फलश्रुति ।।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् ।
सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥२१॥
महादेवजी ने मृत-सञ्जीवन नामक इस कवच को कहा है । इस कवच की सहस्त्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है ॥२१॥

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः ।
सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥२२॥
जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथवा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्युको जीतकर पूर्ण आयु का उपयोग करता है ॥ २२॥

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ ।
आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥२३॥
जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवच का पाठ करता है, उस आसन्न-मृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥२३॥

कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा ।
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥२४॥
यह मृतसञ्जीवन कवच काल के गाल में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर ‍देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणोंसे युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है ॥२४॥

युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं ।
युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥२५॥
युद्ध आरम्भ होने के पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवच का २८ बार पाठ करके रणभूमि में उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुऔंसे अदृश्य रहता है ॥२५॥

न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै ।
विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा ॥२६॥
यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥२६॥

प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं ।
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥२७॥
जो प्रात:काल उठकर इस कल्याण-कारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय सुख प्राप्त होता है ॥२७॥

सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः ।
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥२८॥
वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकार के रोग उसके शरीर से भाग जाते हैं । वह अजर-अमर होकर सदा के लिये सोलह वर्ष वाला व्यक्ति बन जाता है ॥२८॥

विचरव्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् ।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥२९॥
इस लोक में दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकों में विचरण करता रहता है । इसलिये इस महा-गोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नाम से कहा है ॥२९॥

मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥३०॥
यह देवतओंके लिय भी दुर्लभ है ॥३०॥

॥ वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥

Mantra Tantra Yantra Vigyan by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

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Sadgurudev Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

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Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji

Mantra Tantra Yantra Vigyan by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

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Dr. Narayan Dutt ShriMali Ji

जय सदगुरुदेव
दोस्तों,
आप सभी को शिक्षक (गुरु उत्सव) दिवस की हार्दिक शुभकामनाए!

मित्रों गुरु शब्द उस व्यक्तित्व का सम्बोधन है जो एक सामान्य मनुष्य को अपने चेतना के ताप से अपने ज्ञान की ऊष्मा से एक वास्तविक मनुष्य बनाता है उसमे रिशीत्व का…. देवत्व का जागरण करता है। सही अर्थों मे उसे मनुष्य बनाता है और उसे उसकी दिव्य शुप्त शक्तियों से साक्षात्कार करवाता है!
पुरुष को महापुरुष बना देने वाला, नर को नारायण तक लें जाने वाला और शव से शिवत्व तक की यात्रा कराने वाला ही गुरु होता है!
अतः गुरु की प्राप्ति होने पर तुरंत लक्ष्य भेदन में जुट जाएँ और यदि गुरु नहीं मिलें तो उनको प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहे ऐसा ही वेदों और शास्त्रों का संदेश हैं!
दोस्तों आजकल कुछ दुष्ट और नीच लोग पूज्य सदगुरुदेव की निंदा विभिन्न जगहों पर कर रहे हैं।
और प्रायः गुरुभाई ये सब कुछ देखकर व्यग्र हो उठते हैं जो की स्वाभाविक भी है एक वास्तविक शिष्य निःसंदेह अपने गुरु की निंदा कभी भी सहन नहीं कर सकता है!
मित्रों आपको थोड़ा भूतकाल का स्मरण कराना चाहूँगा
काफी समय पहले “चंडी” नामक पत्रिका ने निखिल निंदा करने की जिम्मेदारी उठाई थी!
हर अंक में सदगुरुदेव के निंदा में चार चार पाँच पाँच लेख लिखे जाते थेँ उस पत्रिका के महान संस्थापक और उनके शिष्यों के द्वारा!
आइए आपको थोड़ा चंडी पत्रिका के इतिहास से परिचित कराते हैं! ये पत्रिका मँत्र तंत्र यंत्र विज्ञान पत्रिका के पहले से आ रही थी और निश्चय ही एक ज्वलंत कार्य समाज में पत्रिका परिवार (चंडी) द्वारा किया गया आज भी इनके पुस्तकों को तांत्रिक समाज में सम्मान से देखा जाता है!
परंतु आज इस प्रसिद्ध पत्रिका को उसके संस्थापक को और उनके निखिल निंदा करने वाले उन शिष्यों को जानने वाले कितने लोग हैं यहाँ सम्भव है इस पोस्ट को पढ़ने के बाद कुछ लोग जान जाएँ!
आखिर ऐसा क्या हो गया की चंडी पत्रिका जो की समाज में तंत्र की अलख जला रही था
उसका और उसके उद्देश्यों का नामो निशान अब समाज से गायब हो गया????
इसका कारण है निंदा
संत की निंदा!!
इसका कारण है उद्देश्य पूर्ति के लिए देश काल और परिस्थिति से समझौता नहीं करने की हठधर्मिता!!! (हालाँकि निखिल निंदा करने के बाद ये हठधर्मिता इनकी मजबूरी और कमजोरी दोनो बन चुकी थी)
दोस्तों मैने दो कारण बताए हैं दोनो पर ध्यान देने की आवश्यकता है!
दोस्तो आज समय बदल चुका है यदि वास्तव में समाज के बीच में बैठकर पूरे समाज को तंत्र के प्रति जागरूक करना है तंत्र की पुनर्स्थापना करनी है तो आपको (अर्थात गुरु को) अपना वित्त समायोजन भी करना ही पड़ेगा अन्यथा बड़ा से बड़ा ज्ञानी भी नुक्कड़ के तांत्रिकगिरी से अधिक कुछ नहीं कर पाएगा!
इसी कारण को ध्यान में रखकर सदगुरुदेव ने अपने उद्देश्य (तंत्र की समाज में पुनर्स्थापन) के पूर्ति के लिए एक निश्चित धनराशि न्योछावर के रूप में लेने का प्रावधान बनाया क्योंकि आज के समय में गुरु शिष्य से उसके श्रमदान की यदि अपेक्षा करने लग जाए तो ज्ञात होगा की कुल आठ दस से अधिक शिष्य ही नहीं रुके गुरु देव के पास सेवा करने को?
तो क्या इसी प्रकार सम्भव था तंत्र का पुनर्जागरण आठ दस शिष्य को शिक्षा दीक्षा दे देने मात्र से???
पूज्य गुरुदेव को ज्ञात था की कुछ लोग उनकी निंदा करेंगे उन्हे विष पीने को विवश करेंगे

परंतु जिसने “शिवत्व” को प्राप्त कर लिया हो उसे “हलाहल” से क्या डरना????
अतएव उन्होने इन नींदकोँ (भेड़ीयों- जो स्वयं कुछ न तो कर सकते है और न किसी को करने देना चाहते हैं) के मध्य सिंह की तरह बैठकर अपने लक्ष्य पूर्ति में संलग्न रहे!
मित्रों इन घटनाओं से हमे ये सीखने को मिलता है की हमे इनके तरफ से खुद को हटाना होगा हमारे द्वारा इनको जवाब देना इनसे वाद विवाद करना ही वो ईंधन है जिससे इन निखिल निंदा करने वाले नीच दुष्टोँ को ऊर्जा मिलता है!
इनका सिर्फ एक ही समाधान है इन्हे जहाँ देखो ब्लाक कर दो
जिस ग्रुप का एडमिन इनके साथ हो वो ग्रुप छोड़ दो और चुन चुन कर बेन कर दो ब्लाक कर दो फिर देखिए कैसे ये कुत्ते लापता हो जाएँगे
ये अपने अपने समझ की बात है
किसी को मेरी बात बहादुरी लगेगा
किसी को कायरता परंतु एक बात याद रहे इनका अंतिम इलाज ही यही है!
क्योंकि यहाँ कमेंट पोस्ट लिख लिख कर आप इनको शांत नहीं करा सकते कभी
और सामने ये नपुँसक लोग कभी आएँगे नहीं!
सदगुरुदेव भी सक्षम थेँ और उनके सैकड़ों शिष्य भी सक्षम थेँ जो सिर्फ मँत्र बल से उस समय के दुष्टोँ को उनकी वास्तविक हैसियत दिखा सकते थेँ पर सोचिए कहीं ऐसा करने में यदि एक दो शिविर भी छूट गया होता तो आज हमारे बीच एक बहुत दुर्लभ ज्ञान कभी नहीं आ पाता इसलिए उन्होने सृजन को विध्वंस से अधिक महत्व दिया!
अतः मेरा सुझाव है की हम भी उनके ही चरण चिन्हों पर चलें! और अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर रहें
ये नीच लोग अपने अस्तित्व के साथ मिट जाएँगे लेकिन आपको मेरा बात मानना होगा!
मै सदगुरुदेव के लिए अपशब्द गाली गलोज निंदा आदि करने वाले नीचोँ को उनकी मां के चरित्र पर उँगली उठाते हुए चुनौती देता हूँ की यदि तुममे हिम्मत है तो सामने आओ गुरुधाम है या कोई शिविर (जो की हर एक जगह देश के कोने कोने हो रहा है) आओ और वहाँ अपना बकवास करके दिखाओ! हम क्या करेंगे ये करके दिखा देंगे कहने सुनने का टाइम गया!
जय निखिल
जय महाकाल

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Sadgurudev Param Pujya Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

पाप नाशक मंत्र – ये आप ११ माला ११ दिन कर के फिर एक माला करे

|| ॐ ह्रीं ॐ हुं हुं हुं सर्वपापत्मने सर्व दोष निवृत्तये हुं हुं हुं ॐ ह्रीं ॐ फट ||

माला- कोय भी ले सकते हे मगर रुद्राक्ष की मिले तो अति उत्तेम
जाप -३-५-११-२१-५१-१०८ कर सकते हे
मगर सुविधां न होतो देनिक १ माला जाप अवश्य कर और साथ में narvan मंत्र की १ माला जाप अवश्य करे |

main पूर्ण विशवाश के साथ कहता हु की इश साधना से आप के इश जीवन व् पीछे के कई जन्मो के पापा धुल जाये गे और आप को भी सदगुरुदेव के आशीष प् सकेगे

नर्वाण मंत्र (ऐँ ह्रीँ क्लीँ चामुण्डायै विच्चे) में ऐं ह्रीँ क्लीँ बीजों के उच्चारण मे मकार नहीं गकार का उच्चारण करना ज्यादा प्रभावकारी होता है|

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Sadgurudev Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

श्रद्धाज्ञान देती है !” नम्रतामान देती है !” योग्यतास्थान देती है ! तीनों मिल जाएँ तो व्यक्ति कोहर जगहसम्मानदेती हैं !!!।। आज का दिन शुभ हो ।।

गुरुदेव को मत बहकाइए……………
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गुरु इनसान नहीं है, फिर आप समझ लीजिए। गुरु एक शक्ति का नाम है। इस शक्ति को हमने अपनी जरूरत के मुताबिक़ अपने ध्यान की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति के रूप में गढ़ लिया है। हमने भगवा गढ़ा हुआ है। किसका गढ़ा हुआ है? अपने ध्यान की, धारणा की, भावना की परिपुष्टि के लिए हमने भगवान को गढ़ा है। तो क्या भगवान की शक्ल नहीं है? नहीं, भगवान की शक्ल नहीं हो सकती।
जिसकी कोई शक्ल नहीं हो सकती, उसको आप क्या चीज खिलाएँगे? हम तो चंदन चढ़ाएँगे, अक्षत चढ़ाएँगे ……… ।। क्या चढ़ाएँगे और कहाँ चढ़ाएँगे? चंदन चढ़ाने से, अक्षत चढ़ाने से, चीज खिलाने से, उसकी प्रशंसा करने से क्या वह प्रसन्न हो जाएगा? आपस की यह प्रशंसा किसकी है? आपकी। आप कहते हैं गुरुदेव जी! आप ऐसे हैं और आप भगत जी, बहुत अच्छे हैं। भगत जी आप तो आप ही हैं। प्रशंसा के सहारे पर, जीभ की नोक के सहारे पर, मंत्रों के सहारे पर, अक्षरों के उच्चारण के सहारे पर आप गुरुदेव से सब कुछ पा लेना चाहते हैं।

गुरुदेव दो रूपों में आते है
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भक्ति जब आती है तो करुणा लेकर आती है। जब वह करुणा लेकर आती है तो आदमी दूसरों की सहायता किए बिना, सत्प्रवृत्तियों के संवर्द्धन में योगदान दिए बिना रह नहीं सकता। आदमी के भीतर जब करुणा आएगी तो वह बिखरती चली जाएगी। गुरुदेव जब मनुष्य के अंतराल में आते हैं तो संग्रही, विलासी के रूप में नहीं आते। वासना के रूप में नहीं आते। कैसे आते हैं गुरुदेव….? अरे साहब! भगवान रात को आते हैं और सपने में आते हैं, वंशी बजाते आते हैं, घोड़े पर सवार होकर आते हैं, बैल पर सवार होकर आते हैं। बेकार की, पागलपन की बातें करना बंद कीजिए। गुरुदेव इस तरह से नहीं आते, आप समझते क्यों नहीं।गुरुदेव किसी के भीतर आते हैं तो दो तरीके से आते हैंएक तो वे इस माने में आते हैं कि आदमी को आत्मसंशोधन के लिए मजबूर कर देते हैं। अपनी समीक्षा करने के लिए, अपने दोष और दुर्गुणों को देखने के लिए अपने आप को बेहतरीन बनाने के लिए, भगवान जब आते हैं तो बाध्य कर देते हैं और निरंतर यह कहते रहते है कि अपने आप को धो, अपने आप को साफ कर, अपने आप को उज्ज्वल बना, ताकि मैं तुझे गोदी में लेने में समर्थ हो सकूँ।

 

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