जय सदगुरुदेव
दोस्तों,
आप सभी को शिक्षक (गुरु उत्सव) दिवस की हार्दिक शुभकामनाए!
मित्रों गुरु शब्द उस व्यक्तित्व का सम्बोधन है जो एक सामान्य मनुष्य को अपने चेतना के ताप से अपने ज्ञान की ऊष्मा से एक वास्तविक मनुष्य बनाता है उसमे रिशीत्व का…. देवत्व का जागरण करता है। सही अर्थों मे उसे मनुष्य बनाता है और उसे उसकी दिव्य शुप्त शक्तियों से साक्षात्कार करवाता है!
पुरुष को महापुरुष बना देने वाला, नर को नारायण तक लें जाने वाला और शव से शिवत्व तक की यात्रा कराने वाला ही गुरु होता है!
अतः गुरु की प्राप्ति होने पर तुरंत लक्ष्य भेदन में जुट जाएँ और यदि गुरु नहीं मिलें तो उनको प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहे ऐसा ही वेदों और शास्त्रों का संदेश हैं!
दोस्तों आजकल कुछ दुष्ट और नीच लोग पूज्य सदगुरुदेव की निंदा विभिन्न जगहों पर कर रहे हैं।
और प्रायः गुरुभाई ये सब कुछ देखकर व्यग्र हो उठते हैं जो की स्वाभाविक भी है एक वास्तविक शिष्य निःसंदेह अपने गुरु की निंदा कभी भी सहन नहीं कर सकता है!
मित्रों आपको थोड़ा भूतकाल का स्मरण कराना चाहूँगा
काफी समय पहले “चंडी” नामक पत्रिका ने निखिल निंदा करने की जिम्मेदारी उठाई थी!
हर अंक में सदगुरुदेव के निंदा में चार चार पाँच पाँच लेख लिखे जाते थेँ उस पत्रिका के महान संस्थापक और उनके शिष्यों के द्वारा!
आइए आपको थोड़ा चंडी पत्रिका के इतिहास से परिचित कराते हैं! ये पत्रिका मँत्र तंत्र यंत्र विज्ञान पत्रिका के पहले से आ रही थी और निश्चय ही एक ज्वलंत कार्य समाज में पत्रिका परिवार (चंडी) द्वारा किया गया आज भी इनके पुस्तकों को तांत्रिक समाज में सम्मान से देखा जाता है!
परंतु आज इस प्रसिद्ध पत्रिका को उसके संस्थापक को और उनके निखिल निंदा करने वाले उन शिष्यों को जानने वाले कितने लोग हैं यहाँ सम्भव है इस पोस्ट को पढ़ने के बाद कुछ लोग जान जाएँ!
आखिर ऐसा क्या हो गया की चंडी पत्रिका जो की समाज में तंत्र की अलख जला रही था
उसका और उसके उद्देश्यों का नामो निशान अब समाज से गायब हो गया????
इसका कारण है निंदा
संत की निंदा!!
इसका कारण है उद्देश्य पूर्ति के लिए देश काल और परिस्थिति से समझौता नहीं करने की हठधर्मिता!!! (हालाँकि निखिल निंदा करने के बाद ये हठधर्मिता इनकी मजबूरी और कमजोरी दोनो बन चुकी थी)
दोस्तों मैने दो कारण बताए हैं दोनो पर ध्यान देने की आवश्यकता है!
दोस्तो आज समय बदल चुका है यदि वास्तव में समाज के बीच में बैठकर पूरे समाज को तंत्र के प्रति जागरूक करना है तंत्र की पुनर्स्थापना करनी है तो आपको (अर्थात गुरु को) अपना वित्त समायोजन भी करना ही पड़ेगा अन्यथा बड़ा से बड़ा ज्ञानी भी नुक्कड़ के तांत्रिकगिरी से अधिक कुछ नहीं कर पाएगा!
इसी कारण को ध्यान में रखकर सदगुरुदेव ने अपने उद्देश्य (तंत्र की समाज में पुनर्स्थापन) के पूर्ति के लिए एक निश्चित धनराशि न्योछावर के रूप में लेने का प्रावधान बनाया क्योंकि आज के समय में गुरु शिष्य से उसके श्रमदान की यदि अपेक्षा करने लग जाए तो ज्ञात होगा की कुल आठ दस से अधिक शिष्य ही नहीं रुके गुरु देव के पास सेवा करने को?
तो क्या इसी प्रकार सम्भव था तंत्र का पुनर्जागरण आठ दस शिष्य को शिक्षा दीक्षा दे देने मात्र से???
पूज्य गुरुदेव को ज्ञात था की कुछ लोग उनकी निंदा करेंगे उन्हे विष पीने को विवश करेंगे
परंतु जिसने “शिवत्व” को प्राप्त कर लिया हो उसे “हलाहल” से क्या डरना????
अतएव उन्होने इन नींदकोँ (भेड़ीयों- जो स्वयं कुछ न तो कर सकते है और न किसी को करने देना चाहते हैं) के मध्य सिंह की तरह बैठकर अपने लक्ष्य पूर्ति में संलग्न रहे!
मित्रों इन घटनाओं से हमे ये सीखने को मिलता है की हमे इनके तरफ से खुद को हटाना होगा हमारे द्वारा इनको जवाब देना इनसे वाद विवाद करना ही वो ईंधन है जिससे इन निखिल निंदा करने वाले नीच दुष्टोँ को ऊर्जा मिलता है!
इनका सिर्फ एक ही समाधान है इन्हे जहाँ देखो ब्लाक कर दो
जिस ग्रुप का एडमिन इनके साथ हो वो ग्रुप छोड़ दो और चुन चुन कर बेन कर दो ब्लाक कर दो फिर देखिए कैसे ये कुत्ते लापता हो जाएँगे
ये अपने अपने समझ की बात है
किसी को मेरी बात बहादुरी लगेगा
किसी को कायरता परंतु एक बात याद रहे इनका अंतिम इलाज ही यही है!
क्योंकि यहाँ कमेंट पोस्ट लिख लिख कर आप इनको शांत नहीं करा सकते कभी
और सामने ये नपुँसक लोग कभी आएँगे नहीं!
सदगुरुदेव भी सक्षम थेँ और उनके सैकड़ों शिष्य भी सक्षम थेँ जो सिर्फ मँत्र बल से उस समय के दुष्टोँ को उनकी वास्तविक हैसियत दिखा सकते थेँ पर सोचिए कहीं ऐसा करने में यदि एक दो शिविर भी छूट गया होता तो आज हमारे बीच एक बहुत दुर्लभ ज्ञान कभी नहीं आ पाता इसलिए उन्होने सृजन को विध्वंस से अधिक महत्व दिया!
अतः मेरा सुझाव है की हम भी उनके ही चरण चिन्हों पर चलें! और अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर रहें
ये नीच लोग अपने अस्तित्व के साथ मिट जाएँगे लेकिन आपको मेरा बात मानना होगा!
मै सदगुरुदेव के लिए अपशब्द गाली गलोज निंदा आदि करने वाले नीचोँ को उनकी मां के चरित्र पर उँगली उठाते हुए चुनौती देता हूँ की यदि तुममे हिम्मत है तो सामने आओ गुरुधाम है या कोई शिविर (जो की हर एक जगह देश के कोने कोने हो रहा है) आओ और वहाँ अपना बकवास करके दिखाओ! हम क्या करेंगे ये करके दिखा देंगे कहने सुनने का टाइम गया!
जय निखिल
जय महाकाल