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28 मार्च नवरात्रि आरंभ, शुभ मुहूर्त के साथ जानें किस दिन करें कौन सी देवी का पूजन

एक वर्ष में चार बार नवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। जो चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने में पड़ता है। कल से चैत्र नवरात्र का आगाज हो रहा है साथ ही हिन्दू नवसंवत्सर भी शुरू होगा। शुभ मुहूर्त के साथ जानें किस दिन करें कौन सी देवी का पूजन 28 मार्च- नवरात्र के प्रथम दिवस घटस्थापना के साथ देवी शैलपुत्री की पूजा होगी। चैत्र अमावस, भौमवती अमावस (प्रात: 8.27 तक-जालंधर समय), विक्रमी सम्वत् 2073 पूर्ण, विक्रमी सम्वत 2074 तथा चैत्र नवरात्रे प्रारंभ (प्रात: 8.27 के उपरांत-जालंधर समय), नव सम्वत्सर का नाम ‘साधारण’, मेला नवरात्रे प्रारंभ-कांगड़ा, नयना देवी, बालासुंदरी (हिमाचल), मेला मनसा देवी, (पंचकूला) तथा हरिद्वार , मेला बाहूफोर्ट (जम्मू)

Navaratri 2017

                                                     Puja Vidhi Vrat Katha Shubh Muhurat Navratri

29 मार्च- नवरात्र के द्वितीय दिवस चंद्र दर्शन के साथ-साथ देवी ब्रह्मचारिणी का पूजन होगा।

30 मार्च- नवरात्र के तीसरे दिन देवी चन्द्रघंटा की आराधना के अतिरिक्त गणगौरी, श्री मत्स्य जयंती, रजुब (मुस्लिम) महीना तथा उर्स मोइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर) पर्व भी मनाए जाएंगे।

31 मार्च- मां के चौथे स्वरूप देवी कूष्मांडा पूजन, दमनक चतुर्थी, श्री सिद्धि विनायक चतुर्थी व्रत का शुभ समय रहेगा।

1 अप्रैल- पांचवें दिवस शिवपुत्र कार्तिकेय की मां स्कंदमाता के पूजन के अतिरिक्त श्री पंचमी, श्री लक्ष्मी पंचमी, नागपंचमी, हयग्रीव व्रत, श्री गुरु हरगोबिंद जी ज्योति ज्योत समाए दिवस (प्राचीन परम्परा  अनुसार) अप्रैल फूल डे (मूर्ख दिवस) भी रहेगा।

2 अप्रैल- नवरात्र के छठे दिन देवी कात्यायनी के पूजन के साथ चैती छठ, स्कंद षष्ठी, मेला माईसरखाना (भटिंडा, पंजाब) रहेगा।

3 अप्रैल- चैत्र नवरात्र के सातवें दिवस मां कालरात्रि की पूजा होगी। तंत्र-मंत्र के साधको के लिए विशिष्ट रात्रि, ओली तप प्रारंभ (जैन पर्व), मेला लाहौल (मंडी, हिमाचल)।

4 अप्रैल- नवरात्र के आठवें दिन श्री दुर्गा अष्टमी व्रत, महा अष्टमी, कंजक पूजन एवं अशोक अष्टमी प्रात: 11 बजकर 21 मिनट तक है इसके बाद  श्री राम नवमी, श्री दुर्गा नवमी, महानवमी, श्री राम जन्म महोत्सव (श्री राम अवतार जयंती), श्री राम जन्मभूमि परिक्रमा-दर्शन (अयोध्या जी), साईं बाबा जी का उत्सव (शिरडी, महाराष्ट्र), मेला बाहू फोर्ट-जम्मू, मेला माता श्री कांगड़ा देवी जी, श्री अन्नपूर्णा पूजन श्री राम नवमीं व्रत किया जाएगा।

5 अप्रैल- नवमी के दिन मां के नवम स्वरूप देवी सिद्धदात्री की पूजा होगी। चैत्र (वसंत) नवरात्रे समाप्त, नवमीं तिथि प्रात: 10 बजकर 4 मिनट तक, श्री दुर्गा नवमीं, मेला माता श्री मनसा देवी जी, दशमहाविद्या श्री महातारा (तारा) जयंती, मेला रामबन (जम्मू-कश्मीर), आचार्य श्री भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस (जैन पर्व)

6 अप्रैल- नवरात्र-पारणा प्रात: 9 बजकर 16 मिनट तक।

Sadgurudev Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

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Sadgurudev Dr Narayan Dutt Shrimali Ji

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Sadgurudev Param Pujya Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji – Happy Holi 2015

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Gurudev Dr. Narayan Dutt Shri Mali Ji Jai Gurudev Jai Jai Nikhilam Jai Shri Nikhilam Param Pujya Dr. Narayan Dutt Shri Mali Ji (2) Param Pujya Dr. Narayan Dutt Shri Mali Ji (3) Param Pujya Dr. Narayan Dutt Shri Mali Ji Param Pujya Gurudev Dr. Narayan Dutt Shri Mali Ji Param Pujya SadGurudev Dr. Narayan Dutt Shri Mali Ji Param Pujya Shri Nikhileshawaranand Ji SadGurudev Dr. Narayan Dutt Shri Mali Ji Swami Nikhileshawaranand Ji

Sadgurudev Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

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Nikhil Mantra Vigyan

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Sadgurudev Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

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Dr.Narayan Datt Shrimali

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Sadgurudev Param Pujya Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji

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Param Pujay Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji

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श्रीमहादेव-प्रोक्तं-मृत-सञ्जीवनी-कवचम् (महा-गोपनीय कवच)

सरद नवरात्री मैं ५१ हजार जाप और उस का ११ माला हवन करने से ये कवच मंत्र सिद्ध हो जाता है |
।। पूर्व-पीठिका ।।
एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमहेश्वरं ।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥१॥
सारात् सार-तरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं ।
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ २॥
समाहित-मना भूत्वा श्रृणुष्व कवचं शुभं ।
श्रृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥३॥

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीमृतसञ्जीवनीकवचस्य श्री महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवता ॐ बीजं, जूं शक्तिः, सः कीलकम् मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः- श्री महादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो देवतायै नमः हृदि, ॐ बीजाय नमः गुह्ये, जूं शक्तये नमः पादयो, सः कीलकाय नमः नाभौ, मम (अमुकस्य) रक्षार्थं कवचपाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

कर-न्यासः- ॐ जूं सः अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ जूं सः तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ जूं सः मध्माभ्यां वषट्। ॐ जूं सः अनामिकाभ्यां हुँ। ॐ जूं सः कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ जूं सः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

हृदयादि-न्यासः- ॐ जूं सः हृदयाय नमः, ॐ जूं सः शिरसे स्वाहा, ॐ जूं सः शिरसे वषट्, ॐ जूं सः-कवचाय हुम्। ॐ जूं सः-त्रयाय वौषट्, ॐ जूं सः अस्त्राय फट्।

ध्यान-
चन्द्रार्काग्नि-विलोचनं स्मित-मुखं पद्म-द्वयान्तः-स्थितम्।
मुद्रा-पाश-मृगाक्ष-सूत्र-विलसत्पाणिं हिमांशु-प्रभम् |
कोटीन्दु-प्रगलत्सुधाऽऽप्लुत-तनुं हारादि-भूषोज्ज्वलं
कान्तं विश्व-विमोहनं पशुपतिं मृत्युञ्जयं भावयेत् ||
॥ मूल कवच पाठ ॥
वराभयकरो यज्वा सर्व-देव-निषेवितः ।
मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥४॥
दधानः शक्तिमभयां त्रिमुखः षड्भुजः प्रभुः ।
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥५॥
अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः।
यमरुपी महादेवो दक्षिस्यां सदाऽवतु ॥६॥
खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः।
रक्षोरुपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदाऽवतु ॥७॥
पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकर-निषेवितः।
वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदाऽवतु ॥८॥
गदाभयकरः प्राणनाशकः सर्वदा गतिः।
वायव्यां मारुतात्मा मां शंकर पातु सर्वदा ॥९॥
खड्गाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शंकरः प्रभुः ॥१०॥
शूलाभयकरः सर्वविद्यानामधिनायकः।
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥११॥
ऊर्ध्वभागे ब्रह्मारुपी विश्वात्माऽधः सदाऽवतु।
शिरो मे शंकरः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः ॥१२॥
भ्रूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिनेत्रो लोचनेऽवतु।
भ्रूमध्यं गिरिशः पातु कर्णी पातु महेश्वरः ॥१३॥
नासिकां मे महादेवः ओष्ठौ पातु वृषध्वजः।
जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान् मे गिरिशोऽवतु ॥१४॥
मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः।
पिनाकी मत्करौ पातु त्रिशूलो हृदयं मम ॥१५॥
पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु जठरं जगदीश्वरः।
नाभिं पातु विरुपाक्षः पार्श्वो मे पार्वतीपतिः ॥१६॥
कटिद्वयं गिरिशो मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः।
गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरु पातु भैरवः ॥१७॥
जानुनी मे जगद्धर्ता जंघे मे जगदम्बिका।
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥१८॥
गिरिशः पातु मे भार्या भवः पातु सुतान् मम।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः। ॥१९॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः ।
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥२०॥
।। फलश्रुति ।।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् ।
सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥२१॥
महादेवजी ने मृत-सञ्जीवन नामक इस कवच को कहा है । इस कवच की सहस्त्र आवृत्ति को पुरश्चरण कहा गया है ॥२१॥

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः ।
सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥२२॥
जो अपने मन को एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथवा दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्युको जीतकर पूर्ण आयु का उपयोग करता है ॥ २२॥

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ ।
आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥२३॥
जो व्यक्ति अपने हाथ से मरणासन्न व्यक्ति के शरीर का स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवच का पाठ करता है, उस आसन्न-मृत्यु प्राणी के भीतर चेतनता आ जाती है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥२३॥

कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा ।
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥२४॥
यह मृतसञ्जीवन कवच काल के गाल में गये हुए व्यक्ति को भी जीवन प्रदान कर ‍देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणोंसे युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है ॥२४॥

युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं ।
युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥२५॥
युद्ध आरम्भ होने के पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवच का २८ बार पाठ करके रणभूमि में उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुऔंसे अदृश्य रहता है ॥२५॥

न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै ।
विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा ॥२६॥
यदि देवताओं के भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥२६॥

प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं ।
अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥२७॥
जो प्रात:काल उठकर इस कल्याण-कारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोक में भी अक्षय सुख प्राप्त होता है ॥२७॥

सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः ।
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥२८॥
वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकार के रोग उसके शरीर से भाग जाते हैं । वह अजर-अमर होकर सदा के लिये सोलह वर्ष वाला व्यक्ति बन जाता है ॥२८॥

विचरव्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् ।
तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥२९॥
इस लोक में दुर्लभ भोगों को प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकों में विचरण करता रहता है । इसलिये इस महा-गोपनीय कवच को मृतसञ्जीवन नाम से कहा है ॥२९॥

मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥३०॥
यह देवतओंके लिय भी दुर्लभ है ॥३०॥

॥ वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥

Mantra Tantra Yantra Vigyan by Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

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